112- महाराजगंज विधानसभा में राजनीतिक दलों का प्रभाव: एक कहानी
एक छोटे से गाँव में, सिवान जिले के महाराजगंज विधानसभा क्षेत्र में, रहता था रामलाल। वह एक साधारण किसान था, जिसकी जिंदगी खेतों, मौसम और राजनीति के उतार-चढ़ाव से जुड़ी हुई थी। महाराजगंज, जो बिहार की राजनीतिक पटकथा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, यहां दलों की बदलती सत्ता ने लोगों की जिंदगी को कई रंग दिए—कभी विकास की चमक, कभी संघर्ष की छाया। रामलाल की कहानी इसी प्रभाव की गवाह है।
बात 1970 के दशक की है। तब जनता पार्टी (JNP) का दौर था। उमाशंकर सिंह जैसे नेता, जो JNP से कई बार जीते, ने इलाके में एक नई उम्मीद जगाई। रामलाल तब युवा था। JNP की जीत के बाद, गाँव में कुछ सड़कें बनीं, सिंचाई की व्यवस्था सुधरी। लेकिन सबसे बड़ा प्रभाव था सामाजिक न्याय का। ऊंची जातियों के दबदबे में दबे पिछड़े वर्गों को आवाज मिली। रामलाल याद करता है, "उस समय पार्टी ने हमें बताया कि हमारी जमीन हमारी है, कोई हमें दबा नहीं सकता।" हालांकि, पार्टी की अंदरूनी कलह ने विकास को धीमा कर दिया, और गाँव में बिजली का इंतजार लंबा खिंच गया।
1980 और 1990 के दशक में उमाशंकर सिंह का प्रभाव जारी रहा, कभी JNP(JP), कभी जनता दल (JD) से। 1990 में JD की जीत ने महाराजगंज में भूमि सुधारों को बल दिया। रामलाल के जैसे छोटे किसानों को कुछ जमीन मिली, जो पहले बड़े जमींदारों के कब्जे में थी। लेकिन इसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ा—जातीय तनाव बढ़ा। ऊंची जातियां JD को पिछड़ों की पार्टी मानती थीं, जिससे गाँव में झगड़े हुए। रामलाल का बेटा, श्याम, स्कूल जाना चाहता था, लेकिन राजनीतिक हिंसा से स्कूल बंद रहते थे। पार्टी बदलती रहीं, लेकिन गरीबी और बेरोजगारी जस की तस।
2000 में समता पार्टी (SAP) की जीत हुई, फिर भी उमाशंकर सिंह ही जीते। लेकिन असली बदलाव आया 2005 से, जब जनता दल (यूनाइटेड) (JD(U)) ने लगातार कब्जा जमाया। दामोदर सिंह जैसे नेता तीन बार जीते—2005 (फरवरी और अक्टूबर) और 2010 में। JD(U) की नीतीश कुमार सरकार ने महाराजगंज में विकास की बयार बहाई। रामलाल के गाँव में पक्की सड़कें बनीं, बिजली पहुंची, स्कूलों में टीचर आए। "JD(U) ने हमें साइकिल दी बेटियों को, और रोजगार के लिए योजना चलाई," रामलाल बताता है। लेकिन प्रभाव दोतरफा था। पार्टी की ऊंची जातियों पर पकड़ कमजोर थी, जिससे भाजपा (BJP) का उदय हुआ। BJP ने ऊपरी जातियों (राजपूत, भूमिहार) का समर्थन जुटाया, और इलाके में विकास के साथ-साथ धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ा। रामलाल के पड़ोसी, जो BJP समर्थक थे, कहते, "अब सुरक्षा है, अपराध कम हुआ।" लेकिन पिछड़े वर्गों में असंतोष था, क्योंकि योजनाएं सब तक नहीं पहुंचीं।
2015 में फिर JD(U) जीती, हेम नारायण सह के साथ। लेकिन गठबंधन की राजनीति ने इलाके को प्रभावित किया। महागठबंधन से NDA तक के बदलाव ने लोगों को भ्रमित किया। रामलाल का पोता, रोहन, अब युवा था। वह देखता था कैसे पार्टियां वोट के लिए जाति का इस्तेमाल करतीं। "JD(U) ने सड़कें बनाईं, लेकिन BJP के साथ मिलकर धार्मिक मुद्दों पर जोर दिया, जिससे गाँव में एकता टूटी," रोहन कहता। विकास हुआ, लेकिन बेरोजगारी बढ़ी। युवा शहरों की ओर पलायन करने लगे।
फिर आया 2020 का मोड़। इंडियन नेशनल कांग्रेस (INC) के विजय शंकर दुबे जीते। यह बदलाव महाराजगंज के लिए नया था, क्योंकि दशकों से JD(U) या उसके सहयोगी हावी थे। INC की जीत ने सामाजिक कल्याण पर जोर दिया। रामलाल के गाँव में स्वास्थ्य केंद्र खुले, महिलाओं के लिए योजनाएं आईं। लेकिन चुनौतियां रहीं—कोरोना महामारी ने अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई, और विपक्षी दलों की आलोचना से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी। रामलाल सोचता, "INC ने गरीबों की बात की, लेकिन पुरानी पार्टियों की तरह वादे पूरे करने में समय लगता है।"
आज, 2025 में चुनाव की सरगर्मियां फिर तेज हैं। रामलाल की कहानी बताती है कि राजनीतिक दल महाराजगंज में विकास के इंजन भी हैं और विभाजन के कारण भी। JD(U) और BJP ने基础设施 मजबूत किया, लेकिन जातीय राजनीति बढ़ाई। INC ने समावेशी विकास की कोशिश की, लेकिन स्थिरता की कमी रही। रामलाल कहता है, "पार्टियां आती-जाती हैं, लेकिन असली प्रभाव हमारी एकता पर पड़ता है। अगर दल लोगों के लिए काम करें, तो महाराजगंज जैसे इलाके फलें-फूलें।"
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