डॉ. देव रंजन: एक चिकित्सक से विधायक तक की सफर...
महाराजगंज, सिवान का एक छोटा सा शहर, जहां खेतों की हरियाली और लोगों की सादगी के बीच एक नाम गूंजता था—डॉ. देव रंजन सिंह। उनकी कहानी केवल एक चिकित्सक या राजनेता की नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स की है, जिसने अपने काम और जुनून से इलाके के लोगों के दिलों में जगह बनाई।
डॉ. देव रंजन का जन्म सिवान के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता, श्यामदेव सिंह, एक साधारण किसान थे, जो मेहनत और ईमानदारी की मिसाल थे। बचपन से ही देव रंजन में कुछ कर गुजरने की चाह थी। उन्होंने 1987 में दरभंगा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और 1993 में पटना मेडिकल कॉलेज से एमडी की डिग्री हासिल की। डॉक्टर बनने के बाद उन्होंने सिवान में अपनी प्रैक्टिस शुरू की। उनकी क्लिनिक, जो बाद में एक निजी अस्पताल, एकावली श्याम हॉस्पिटल, के रूप में जानी गई, गरीबों के लिए आशा का केंद्र बन गई। मरीजों के लिए उनकी सहानुभूति और सस्ती चिकित्सा ने उन्हें स्थानीय लोगों का चहेता बना दिया।
लेकिन देव रंजन का मन केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं था। वह देखते थे कि महाराजगंज में बुनियादी सुविधाओं की कमी—खराब सड़कें, बिजली की अनियमितता, और बेरोजगारी—लोगों की जिंदगी को मुश्किल बना रही थी। 2000 के दशक में, जब बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में विकास की हवा चली, डॉ. देव रंजन ने राजनीति में कदम रखा। 2010 में वह पहली बार महाराजगंज विधानसभा से एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़े, लेकिन जीत नहीं पाए। फिर भी, उनके अभियान ने लोगों का ध्यान खींचा। उनकी सादगी और शिक्षा के कारण लोग उन्हें "डॉक्टर साहब" कहकर बुलाने लगे।
2013 में, जब महाराजगंज में उपचुनाव हुआ, डॉ. देव रंजन ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। यह उनके लिए एक बड़ा मोड़ था। विधायक बनने के बाद, उन्होंने अपने क्षेत्र में स्वास्थ्य और शिक्षा पर जोर दिया। उनके प्रयासों से महाराजगंज में कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का नवीनीकरण हुआ, और स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति हुई। एक बार एक गाँव में बाढ़ आई, तो डॉ. देव रंजन खुद राहत सामग्री लेकर पहुंचे। गाँववाले आज भी बताते हैं कि वह रातभर जागकर बाढ़ पीड़ितों की मदद करते रहे।
हालांकि, उनकी राजनीतिक यात्रा आसान नहीं थी। 2015 में, वह फिर BJP के टिकट पर लड़े, लेकिन जनता दल (यूनाइटेड) के हेम नारायण सह से हार गए। 2020 में, उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) से अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन इस बार भी विजय शंकर दुबे (कांग्रेस) और हेम नारायण सह से पीछे रह गए। हार के बावजूद, डॉ. देव रंजन ने हिम्मत नहीं हारी। वह कहते थे, "राजनीति मेरे लिए सेवा का माध्यम है, जीत-हार तो आती-जाती रहती है।"
उनके जीवन में विवाद भी आए। कुछ लोग उनकी संपत्ति, जो 2020 में 8.7 करोड़ रुपये थी, पर सवाल उठाते थे। तीन आपराधिक मामले—चुनावी उल्लंघन और अवैध भुगतान से जुड़े—उनके नाम पर दर्ज हुए, लेकिन ये मामले अभी तक विचाराधीन हैं। डॉ. देव रंजन हमेशा कहते, "मेरा काम मेरी सच्चाई है।"
राजनीति के अलावा, डॉ. देव रंजन ने व्यवसाय में भी हाथ आजमाया। वह उर्मिला ऑटोमोबाइल्स (टाटा मोटर्स) और संजीवनी ड्रग प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक रहे। लेकिन उनके दिल में हमेशा महाराजगंज के लोग बसे रहे। वह अक्सर गाँवों में मुफ्त स्वास्थ्य शिविर लगाते, जहां वह खुद मरीजों को देखते। उनकी पत्नी, जो स्वयं एक डॉक्टर थीं, उनके इस मिशन में कंधे से कंधा मिलाकर साथ देतीं।
आज, 2025 में, डॉ. देव रंजन भले ही विधायक न हों, लेकिन महाराजगंज में उनकी छवि एक ऐसे नेता की है, जो चिकित्सक के रूप में लोगों की सेवा करता रहा। उनके द्वारा शुरू किए गए अस्पताल और स्वास्थ्य शिविर आज भी चल रहे हैं। गाँव के बुजुर्ग कहते हैं, "डॉक्टर साहब ने हमें सिर्फ दवा नहीं दी, बल्कि जीने की उम्मीद दी।"
डॉ. देव रंजन की कहानी महाराजगंज की मिट्टी से जुड़ी है—एक ऐसी कहानी, जो बताती है कि सच्ची सेवा और जुनून से कोई भी व्यक्ति, चाहे वह डॉक्टर हो या नेता, लोगों के दिलों में अमर रह सकता है।
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