मौनिया बाबा मेला: महाराजगंज की आस्था और उत्सव की कहानी
महाराजगंज, सिवान जिले का एक छोटा सा कस्बा, हर साल भादो माह की अमावस्या को एक अनूठे उत्सव का गवाह बनता है—मौनिया बाबा महावीरी झंडा मेला। यह मेला न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी आस्था और उत्साह का केंद्र है। इस मेले की कहानी 1923 से शुरू होती है, जब सिद्ध पुरुष मौनिया बाबा ने इस स्थल पर जीवित समाधि ली थी।
मेले की ऐतिहासिक शुरुआत - कहानी शुरू होती है 1923 में, जब मौनिया बाबा, एक संत जिनके चमत्कारों की चर्चा दूर-दूर तक थी, ने महाराजगंज में समाधि लेने का निर्णय लिया। उनकी समाधि के बाद, स्थानीय लोगों ने उनके पराक्रम और आध्यात्मिक शक्ति को सम्मान देने के लिए इस मेले की नींव रखी। महाराजगंज और दारौंदा थाना क्षेत्र के 25 गांवों के लोगों ने आपसी सौहार्द के साथ मिलकर इस मेले को आयोजित करने का फैसला किया। तब से हर साल भादो माह की चतुर्दशी को यह मेला लगता है, जो एक माह तक चलता है। मेले का रंगारंग स्वरूप -मौनिया बाबा मेला महाराजगंज की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का प्रतीक है। मेला शुरू होने से पहले ही, शहर और आसपास के गांवों में तैयारियां जोरों पर शुरू हो जाती हैं। सड़कों की मरम्मत, चापाकलों की सफाई और बिजली व्यवस्था को दुरुस्त किया जाता है। मेले का उद्घाटन रात में भव्य तरीके से होता है, जिसमें महावीर की पूजा-अर्चना और झांकियां मुख्य आकर्षण होती हैं। मेले में 25 से अधिक अखाड़ों का प्रदर्शन होता है, जिनमें नागाजी का मठ, काजी बाजार, मोहन बाजार, नवलपुर, पसनौली, रामापाली, और बंगरा जैसे गांवों के अखाड़े शामिल हैं। इन अखाड़ों में पारंपरिक नृत्य, करतब और शक्ति प्रदर्शन देखने लायक होते हैं। रात 12:30 बजे शुरू होने वाला अखाड़ों का जुलूस पूरे शहर में उत्साह की लहर दौड़ा देता है। मेला केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं है। यहां मीना बाजार, झूले, मौत का कुआं और लकड़ी की दुकानें भी लगती हैं, जो बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी को आकर्षित करती हैं। प्रदर्शनियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम मेले को और भी जीवंत बनाते हैं प्रशासन का योगदान और राजकीय दर्जा - 2025 में मौनिया बाबा मेले को 101 साल बाद राजकीय दर्जा प्राप्त हुआ, जिसने इस आयोजन को और भी खास बना दिया। 22 और 23 अगस्त को आयोजित होने वाले इस मेले के लिए जिला प्रशासन और अनुमंडल प्रशासन पूरी तरह तत्पर रहता है। रैपिड एक्शन फोर्स, घुड़सवार फोर्स और महिला पुलिस बल की तैनाती के साथ-साथ मेला नियंत्रण कक्ष भी बनाए जाते हैं। आस्था और भाईचारे का प्रतीक मौनिया बाबा मेला केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि आपसी भाईचारे और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। मेला प्रबंध समिति, नगर पंचायत, बिजली विभाग और स्थानीय लोग मिलकर इसे सफल बनाते हैं। यह मेला लोगों को एकजुट करता है और मौनिया बाबा के प्रति उनकी आस्था को और गहरा करता है। एक अनोखी स्मृति -मौनिया बाबा मेला हर साल हजारों लोगों के लिए खुशी, आस्था और उत्सव का अवसर लेकर आता है। यह न केवल महाराजगंज की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे एक संत की समाधि ने एक पूरे समुदाय को एकजुट किया। यह मेला हर उस व्यक्ति के लिए एक अनोखा अनुभव है, जो इसमें शामिल होता है, और यह महाराजगंज की पहचान को और भी गौरवमयी बनाता है। लेखक : वकील प्रसाद - पत्रकार
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